Ghoomer Review : जिंदगी लॉजिक का खेल नही, मैजिक का खेल है यह जबरदस्त डायलॉग हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के दमदार डायरेक्टर आर बाल्कि की फिल्म 'घूमर' का है। यह फिल्म एक ऐसी प्रेरणादायक कहानी लेकर आई है जो किसी भी हालत मे और कभी न हारने का सबक देती है। कहानी एक हाथ न होने के बाबजूद ओलंपिक मे गोल्ड मेडल जीतने वाले शूटर कैरोली टकाक्स की असल जिंदगी से प्रेरित है। फिल्म मे आपको बॉलीवुड अभिनेता अभिषेक बच्चन और सैयामी खैर लीड रोल मे देखने मिलेंगी।
क्या है 'घूमर' की कहानी
यह अनिनी नाम की एक वूमन क्रिकेटर की कहानी है जिसका सपना इंडियन टीम से क्रिकेट खेलना होता है जैसे तैसे वह इंडियन टीम मे सेलेक्ट भी हो जाती है लेकिन एक्सिडेंट के चलते उसका एक हाथ कट जाता है। जिसकी वजह से अब वह बैटिंग नही कर सकती ऐसे मे अनिनी इंडियन क्रिकेट टीम से कैसे खेलेगी। इसी बीच टेस्ट क्रिकेट खेल चुके पदम सिंह सोढी उसकी जिंदगी मे आते है और आगे का रास्ता दिखाकर साहस बढ़ाते है। वह बताते है की क्रिकेट का मतलब सिर्फ बैटिंग नही बल्कि बॉलिंग भी होता है। वह अनिनी को अपने एक हाथ से बॉलिंग कर इंडियन क्रिकेट टीम मे खेलने के लिए प्रेरित करते है। और ट्रेनिंग भी देते है। अब आगे जो होगा उसे जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
एक्टिंग
अभिषेक बच्चन फिल्म की आत्मा है उन्होंने अपनी एक्टिंग से कहानी को निखारने का काम किया है। फर्स्ट हॉफ मे जब भी अभिषेक स्क्रीन पर आते है छा जाते है। उन्होंने एक शराबी कोच का किरदार बड़ी सिद्धत से निभाया है क्योंकि उन्हे देखकर ऐसा लगता है की उन्होंने सच मे शराब पीकर एक्टिंग की है। पूरी फिल्म उनके कंधो पर आगे बढ़ती है उनकी डायलॉगबाजी और एक टूटे हुए को प्रेरित करने का अंदाज कमाल का है। सैयामी खैर ने भी लाजवाब काम किया है क्रिकेटर अनिनी के किरदार मे वह जमती है। सैयामी का स्क्रीन प्रेजेंस शानदार है। शबाना आजमी ने भी सैयामी की दादी के किरदार मे चार चाँद लगाने की अच्छी कोशिश की है, शबाना का किरदार काफी प्यारा और दिलचस्प है। अंगद बेदी ने सैयामी के बॉयफ्रेंड का किरदार निभाया है उनकी एक्टिंग भी ठीक है लेकिन उन्हे स्क्रीन पर बहुत कम समय दिया गया है। आखिरी मे अमिताभ बच्चन का केमियों कहानी मे रंग डालने का काम करता है।
क्या है 'घूमर' की खूबियां और कमियाँ
आर बाल्कि का निर्देशन शानदार है उन्होंने हर किरदार को इस तरह से सेट किया है की हर किरदार अपना सा लगने लगता है वह हर किरदार की अहमियत बढ़ा देते है। उन्होंने इस सब्जेक्ट को जिस तरह से ट्रीट किया है वह कोई और नही कर सकता यह एक अच्छे निर्देशन की खासियत है। मिथुन का म्युज़िक असरदार है जो कहानी के हिसाब से फिट बैठता है। फिल्म का टाइटल ट्रैक एक अलग ही एक्सपीरियंस देने मे कामयाब होता है। लेकिन फिल्म मे कुछ कमियाँ भी है फिल्म देखते वक्त दिमाग मे कई सवाल उठते है जैसे क्या कोई एक हाथ वाला खिलाडी क्रिकेट टीम मे चुना जा सकता है? क्या बॉलर घूम घूम कर बॉलिंग कर सकता है? हालांकि आर बाल्कि ने इन प्रश्नो को हल करने की कोशिश की है लेकिन उनकी कोशिश असरदार नही लगती। सेकंड हाफ काफी प्रेडिक्टेबल है और क्लैमेक्स थोड़ा सा नाटकीय हो जाता है।